रोज सुबह की तरह आज भी पेपरवाले के अख़बार फेकने से आँख खुली हर सुबह यह कुछ कुछ घडी के अलार्म का काम करता है, एक दिन पहले की मेहनत को अख़बार ने किस तरह तौल यह भी सुबह ही पता चलता है, लेकिन उस रोज वोह भाव नदारद था, चाय पीने के आधे घंटे बाद भी अखबार वही पड़ा था, वोह इसलिए की एक दिन पहले जो ऑफिस में हुआ उसके बाद पत्रकारिता के मायने ही बदल गए, एक निजी पुष्पांजलि अस्पताल की खबर पर नोटिस आया यह नयी बात नहीं थी नोटिस आना इस बात का भी प्रमाण है की रिपोर्टर काम कर रहा है, बात ऑफिस के मतहतो तक पहुची, तथ्य मज़बूत थी इसलिए आत्मविश्वास तनिक भी नहीं डगमगाया, कहा गया नोटिस का जवाब देना है या फिर केस लड़ना है. अपने स्तर पर तैयारी पूरी थी, पक्ष अधिक मज़बूत करने के लिए मरीज की आवाज़ की रिकॉर्डिंग भी सुरक्षित रख ली, शाम पांच बजे तक जवाब देना था, कंपनी का वकील लगातार सामने वाले की तरफदारी कर रहा था मानों हमारी कंपनी से नहीं विरोधी पक्ष से वेतन मिलता है. लगातार एक घंटे की बात के बाद निर्णय लिया केस लड़ा जायेगा अच्छा लगा जानकर की सस्थान आप पर विश्वास करता है, एक दिन बाद फिर बुलाया गया लगा कुछ दस्तावेज और चाहिए, लेकिन इस बार सरेंडर करने को बुलाया गया. मन की अंतर्वेदना खाए जा रही थी तीन बातो पर स्पस्टीकरण जाना था जो गलत थी, नोटिस भेजने वाला संसथान की कमजोरी को समझ चूका था, लगा तीन लाइन स्पस्टीकरण के लिखने की जगह रिजाइन लिख दो, लेकिन ऐसा नहीं हुआ बॉस के कहे अनुसार चार लाइन लिखी गयी और अगले दिन छपी भी वोह नहीं जो बल्कि वोह जो लिखाया गया. एक पल में अपनी हकीकत सामने आ गयी. मन हतोसाहित हुआ. लेकिन यह अंत नहीं था जो देखना था अभी छोड़ दिया गया तोह ऐसी कई हकीकत नहीं दिख पायेगी। अख़बार ने सच के साथ में साथ नहीं दिया। लेकिन सही को सही साबित करने की एक मुहीम अभी भी जारी है एक पत्रकार की हैसियत से नहीं एक आम इन्सान की हैसियत से, अस्पताल के खिलाफ देहली मेडिकल कौंसिल में मामला दर्ज कराया गया, मरीजो के मेडिकल बीमा राशी का इस्तेमाल कर बीमार छोड़ने वाले अस्पतालों के खिलाफ रिट दाखिल की गयी उम्मीद है फैसला हक में होगा, एक पत्रकार की हैसियत से नहीं यह जीत एक आम इन्सान की होगी,