Saturday, 27 January 2018

शुक्रिया एम्स, शुक्रिया दोस्त


 


पेशे से पत्रकार, घुमने और पढने का शौंक, यूं तो यहां आना एक इत्तेफाक था, लेकिन यहां आएं तो यहीं के होकर रहे गए, खबरों को चुनने के लिए दिन भर घुमना और अगर पसंद की मिल जाएं तो उसको पकाने के लिए जी जान लगा देने का तक का जुनून, हेल्थ बीट देखते देखते अस्पतालों से चरम सीमा तक का प्रेम हो गया, अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हर बड़े अस्पताल का चिर परिचित चेहरा हमें वहां का मुलाजिम समझता है। इसी घुमक्कड़ी की आदत की बदौलत जिंदगी ने कुछ अजीज दोस्त भी दिए।

एम्स के न्यूरोलॉजी विभाग की ओपीडी में रोजाना की तरह भीड़ थी, कमरा नंबर सात के सामने एक बेसुध सी महिला कभी व्हील चेयर पर गर्दन लटकाएं अपने पति को देखे रही थी तो कभी  डॉक्टर के कमरें को,  तंग जगह और भीड़ के कारण रूपम से ज्यादा देर बात नहीं हो पाई, कुछ देर रूककर पूछा, कहां से आई हो, क्या परेशानी है? एक सवाल ने जैसे उसके मन के अंदर की पीड़ा को हवा दे दी, झारखंड निवासी रूपम के पति के सिर में ट्यूमर है, बीते चार साल से एम्स इलाज कराने रही है, सात और दस साल के दो बच्चों की परवरिश के साथ ही रूपम को पति का इलाज भी कराना है। हर दो हफ्तें रूपम डॉक्टर के बताए समय पर एम्स पहुंच जाती है। बातों का सिलसिला आगे बढ़ता इतने में ही नंबर गया, पति को कुर्सी से संभालती हुई वह कमरे की ओर बढ़ी, पीछे मुड़कर कहा, सड़कपार राजगढ़िया धर्मशाला में ठहरे हैं, आइएगा मिलने, रूमप की थोड़ी लेकिन बेहद गंभीर बातों ने उससे दोबारा मिलने की वजह पैदा कर दी, दो दिन बाद फिर एम्स जाना हुआ, मैं राजगढ़िया के गेट पर खड़ी, एक पत्रकार की हैसियत से नहीं, एक समाजसेविका के रूप में, बहुत बार ऐसा होता है कि कुछ अच्छा करने के लिए पत्रकार सरीखी सही पहचान बताने की जगह सामान्य परिचय देने में काम जल्दी बन जाता है। रूपम के पति को कैंसरयुक्त सिर का ट्यूमर था, जिसने दिमाग को अधिकांश हिस्सा घेर रखा था, सर्जरी कर ट्यूमर निकाला जा चुका था, हर दो हफ्ते में कीमो के लिए उसे झारखंड से एम्स आना होता है। रूपम इस संघर्ष में अकेले ही थी, बच्चों की जरूरत पूरी करने के लिए घरों में काम भी करती थी। लेकिन बीते तीन साल में उसके एम्स आने के कार्यक्रम में कभी कोई बदलाव नहीं हुआ, रूपम ने बताया कि आठ चरण की कीमों होनी है, सेहत में सुधार हो रहा है तो दिल को तसल्ली मिल रही है। ओपीडी में रूपम से मुलाकात हुई, लेकिन इसके बाद मिलने का सिलसिला जारी रहा, कुछ दिन बाद जब इस बात की तसल्ली हो गई कि पति पूरी तरह ठीक है तब रूपम का एम्स आना कम हो गया, पति की सेहत में सुधार के साथ ही मैं रूपम में एक अजीब तरह का आत्मविश्वास देख रही थी। दो साल के अंतराज के बाद मार्च 2017 में उसने फिर फोन किया, तय समय के अनुसार अगले दिन मैं राजगढ़िया के गेट पर मिली, बताया गया, लड़के ने बीए पास कर दिल्ली में ही नौकरी शुरू कर दी है, पति सहित पूरा परिवार अब यहीं रहेगा, लड़की को बीए की पढ़ाई के लिए डीयू में प्रवेश कराना है। बीते पांच साल के अपने दोस्ती का सफर एक बारी में मेरी आंखों के सामने घुम गया। दिल से रूपम ने कहा शुक्रिया एम्स, शुक्रिया दोस्त,