I am a heart core journalist. Some time things make me to ponder on the issue, when people dont get his of her right of health. food and ofcourse of shelter. Coverning health since 8 years some things that can not reflect my passion of writing in print media. That i want to put on this platform. hope i will be successfull in delivering my things in simple manner.
Wednesday, 7 March 2018
aapni baat: वो लड़की
aapni baat: वो लड़की: वो लड़की कॉलेज की हर लड़की उससे दूर भागती थी, उसके साथ चलना तो दूर कोई साथ बैठना पसंद नहीं करता था, जहां लड़कियों के झुंड के बीच लाली ल...
वो लड़की
वो लड़की
कॉलेज की हर लड़की उससे दूर भागती थी, उसके साथ चलना तो दूर कोई साथ बैठना पसंद नहीं करता था, जहां लड़कियों के झुंड के बीच लाली लिपस्टिक और नए फैशन की बातें होती थी, उसके पास केवल अपने जीते हुए मेडल, हर्डल रेस और लांग रेस के किस्से होते थे। वह अब तक पढ़ी भी लड़को के बीच थी और यही कारण रहा कि पहनावे से भी वह खुद को लड़को जैसा ही रखती थी। प्रार्थना सभा शुरू होने से पहले ही वह लाइन में आकर खड़ी हो गई, उसे कॉलेज में प्रवेश लिए एक हफ्ते से अधिक हो गया था, लेकिन किसी ने उससे दोस्ती करने की हिम्मत नहीं की, हालांकि कानाफूंसी के जरिए उसके चर्चे हर जुबां तक पहुंच चुके थे।
देहरादून से दसवीं की परीक्षा पास कर उसने ग्याहवी में एडमिशन लिया था, कॉलेज क्या शहर ही नया था, दोस्त होना तो दूर की बात। उसने मन के भाव ने प्रिंसिपल ने पढ़ा और बोले, प्रतिमा क्या हुआ, कॉलेज अच्छा नहीं लगा, दोस्त नहीं बना अभी तक क्या कोई, बेहद कम और लगभग चुप रहने वाली उस लड़की की पहली बार क्लास में सबसे आवाज सुनी, नहीं, हमें कोई यहां पसंद नहीं करता, भारी भरकम आवाज और उतने ही रौबिले अंदाज में दिया गया जवाब, प्रिंसिपल के कहने पर दो लड़कियों को प्रतिमा से बात करने को कहा गया। कॉलेज से घर की दूरी लगभग बीस मिनट की थी, जिसे अकसर पैदल चल तक ही तय किया जाता था, जबकि प्रतिमा की मौसी का घर जहां रहकर वह पढ़ने आई थी, लगभग आधे घंटे की दूरी पर था, प्रिसिपल की डांट के बाद यकायत सब लड़कियां उसे कंपनी देने पहुंच गई, लेकिन सुषमा का घर रास्ते में ही पड़ता था, घर लौटते हुए सुषमा ने कहा कल जल्दी निकलना घर से चाय पीकर साथ कॉलेज जाएगें, मां भी मिलना चाहती है तुमसे मैने बताया मम्मी को तुम्हारे बारे में, तो आ रही हो न कल सुबह? हां आती हूं तैयार रहना जल्दी निकलना होगा, प्रतिमा ने कहा, कॉलेज से घर और घर से कॉलेज के बीच का साथ अब दोस्ती में बदल गया था, सुषमा के बहाने बाकी लड़कियां भी अब प्रतिमा से घुलने मिलने लगी थी, राज्य स्तरीय रेसिंग में मेडल हासिल करने के उसके किस्से फेमस होने लगे। इसी बीच प्रतिमा गल्र्स हॉस्टल के किस्से भी खूब सुनाती, लड़को जैसा उसका पहनावा और जीत के किस्सों से सुषमा के मन में प्रतिमा के लिए अलग सा आर्कषण पैदा होने लगा, कुछ ही दिन में छह फीट लंबी प्रतिमा और पांच फीट लंबी सुषमा की दोस्ती के किस्से पूरे कॉलेज में छा गए, अब तो उनकी दोस्ती की मिसालें दी जाने लगीं, एक टिफिन में खाना, साथ आने जाने, पढ़ाई करने से लेकर अधिकांश समय दोनों का एक दूसरे के साथ ही बीतता। कॉलेज खत्म होने के बाद प्रतिमा देहरादून वापस चली गई, लेकिन दूर होने से भी दोस्ती पर फर्क नहीं पड़ा, हर दो से तीन महीने में कभी सुषमा देहरादून तो कभी प्रतिमा कानपुर पहुंच जाती, परिजन निश्चिंत थे दोस्ती ही है और दोनो एक दूसरे का अच्छे से ख्याल रखती हैं। एक शाम सुषमा की मां ने उसे एक लड़की फोटो दिखाई, जिसे सुषमा ने नजरअंदाज कर दिया, मां दस दिन में पचास से अधिक लड़कों की फोटो दिखा चुकी थी, लेकिन सुषमा ने पलटकर एक में भी रूचि नहीं दिखाई, मां का मन ठिठका, और प्रतिमा के घर पर आने की पाबंदी लगा दी गई। दोस्ती का सिलसिला चिट्टी के जरिए जारी रहा, एमए करने के बाद सुषमा को दिल्ली में अच्छी नौकरी मिल गई, एक बार फिर उसे प्रतिमा से बेझिझक मिलने का मौका मिला और जुगाड़ लगाकर प्रतिमा भी दिल्ली पहुंच गई,मां को अंदेशा इसी बात का था। बेटी बड़ी हो गई है ज्यादा उलझना ठीक नहीं, यह सोचकर मां ने कुछ नहीं कहा, इसी बीच सुषमा के ऑफिस में एक लड़के ने उसे प्रपोज किया, सुषमा ने घर पहुंचते ही उसे यह बात प्रतिमा को बताई, सुषमा को प्रतिमा के ऐसे किसी भी रिएक्शन की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी, कॉलेज के समय की उसकी सबकी अच्छी दोस्त आज उसकी लाइफ के पहले ब्वाय फ्रेंड को गाली दे रही है, आखिर प्रतिमा इसकी पेजेसिव क्यूं हो रही है हमारी दोस्ती सहेलियो सी ही थी न, प्रतिमा ने क्या सपने बुन रखे है, बताया क्यूं नहीं, ऐसे तमाम सवाल सुषमा के मन में कौंध गए, प्रतिमा ने उसे हिदायत दी कि वह आइदा उस लड़के से नहीं मिलेगी, सुषमा को शक हुआ प्रतिमा का व्यवहार उसके प्रति ठीक नहीं है। दो से तीन महीने के अंदर दोनों में जबरदस्त लड़ाई होने लगी, इतनी कि प्रतिमा को घर छोड़ कर जाता पड़ा, सुषमा को कॉलेज के दिनों का पहला क्रश याद आया, उस समय भी उसने प्रतिमा को उसके बारे मे बताया था तो वह ऐसे ही गुस्सा हुई थी, वह समझ नहीं पाई प्रतिमा लड़को जैसी दिखती ही नहीं है बल्कि उसका व्यवहार भी लड़को जैसा ही है। सुषमा ने मां को फोन कर सारी बातें बताई, मां कुछ दिनों के लिए उसे घर बुलाया और तसल्ली से सारी बातें सुनीं, सुषमा के सामने अब तस्वीर साफ थी, उसने प्रतिमा से दूरी बनानी शुरू कर दी। आज प्रतिमा को सुषमा की जिंदगी से गए दस साल हो गए है, फेसबुक पर लड़को सी दिखने वाली एक लड़की की प्रोफाइल और उसकी दोस्त दिखी तो अचानक प्रतिमा की कहानी याद आ गई।
निशि भाट
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