Friday, 10 August 2018

Battle of a Daughter


जिस पिता के आखिरी शब्द यह हों कि मरने के बाद मेरा मृत शरीर बेटी के घर ले जाया जाए, बेटा मेरी चिता को भी हाथ न लगाए, तो मामला समझते देर नहीं लगनी चाहिए कि बेटे ने बेटे होने का कोई फर्ज अदा नहीं किया, करीब दो हफ्ते पहले इस बुजुर्ग पिता ने रिकार्डिंग के जरिए बहू बेटे की करसूतों की आपबीती सुनाई। इससे पहले दिल्ली पुलिस कमिश्नर को पत्र लिखकर यह भी पूछा कि एक सिनियर सिटीजन होने केनाते क्या मेरा इतना भी अधिकार नहीं कि मैं सम्मान के साथ जी सकूं?
जी हां हर पल उनका सम्मान उस घर में तार तार हो रहा था। द्वारका सेक्टर 12 निवासी 83 वर्षीय केसी मल्होत्रा ने अपने बेटे और बहूे खिलाफ सिनियर सिटिजन एक्ट 2007 के तहत भारतीय संविधान की जान से मारने की कोशिश, सम्पति हड़पने की साजिश, प्रताड़ना, सम्मान को ठेस पहुंचाना, मानवीय अधिकारों का हनन और भरपेट खाना न देनो सहित कई धाराओं में मुकदमा दर्ज करने और गिरफ्तार करने की मांग की है। सात जुलाई को द्वारका थाने में दर्ज शिकायत में बुजुर्ग पिता ने 17 पेज की लिखित शिकायत दर्ज कर बहू और बेटे सहित बहू के रिश्तेदारो  पर प्रताड़ता का आरोप लगाया है। हालांकि बुजुर्ग पिता की 16 जुलाई को ब्लड कैंसर से मौत हो गई। अब आगे की लड़ाई बेटी लड़ेगी जिसकी जिम्मेदारी पिता ने सौंपी है।
जिस बेटे को पढ़ाया लिखाया, उसकी नौकरी तक लगवाई, बिजनेस में लाखों का नुकसान हुआ तो उसकी भी भरपाई पिता ने अपनी जमा बचत से ही पूरी की, बावजूद इसके बेटे ने बहू के साथ मिलकर पिता न सिर्फ घर से बाहर निकाल दिया, बल्कि उन्हे खाना भी नहीं दिया, एक तरह से अपने ही घर में कैदियों की तरह रहें।  बेटी अब बेटे द्वारा पिता को प्रताड़ित करने की सजा दिलाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती, बेटी की अंर्तआत्मा ने कई बार आवाज दी कि पापा वहां ठीक नहीं है। फोन भी किया, लेकिन पिता अपने अनुभव और बेटे की कार गुजारियों को किसी को न बताएं इसके लिए उनके कई फोन टोड़ दिए गए। बेटी अब आवाज मुखर कर मीडिया तक अपने भाई की करतूत को पहुंचाना चाहती है। मरने से पहले पिता ने ऑडियो रिकार्डिंग कर अपनी आप बीती सुनाई है। कैंसर से जूझ रहे पिता को बेटे ने डॉक्टर को नहीं दिखाया, बेटी घर पहुंची तो पापा का बिस्तर खून से लथपथ था, इसके बाद से उनके उन्हें भाई के घर पापा को नहीं जाने दिया। तीन साल पहले ही बेटी प्रीति मल्होत्रा की चेन्नई से दिल्ली पोस्टिंग हुई, शादी के बाद वह चेन्नई शिफ्ट हो गई थी, भाई की शादी के बाद से ही पिता पर अत्याचार शुरू हो गए थे, कुछ साल पहले ही मां का भी बीमारी की वजह से देहांत हो गया था। प्रीति कहती हैं कि बीमारी की वजह से पापा ने वकालत की प्रैक्टिस छोड़ दी थी, फोन पर अकसर वह कुछ नहीं बताते थे। एक बार बेटे के व्यवहार से दुखी होकर अकेले ही मेट्रो स्टेशन तक पहुंच गए, जहां से किसी परिचित ने मुझे फोन करके जानकारी दी। इसके बाद से मैने लगातार पापा की सेहत पर नजर रखना शुरू कर दिया, बेटे के गलत व्यवहार के बाद भी पापा मेरे पास ज्यादा दिन नहीं रहना चाहते थे। वह चाहते थे बेटा सुधर जाएं और अपनी जिम्मेदारी समझे, एक बार भूख से तड़फते पिता ने बेटी के घर खाना खा लिया तो घर आकर बहू ने उन्हें सीढ़ियों पर से धक्का दे दिया, और बोली कि बाहर से खाना खाकर आते हैं, लोग क्या सोचते होगें हम इन्हें खाना नहीं देते? बहू बेटे के अत्याचार से परेशान पिता कई बार बेटी के घर चले जाते थे। बावजूद इसके बेटे ने कभी अपना फर्ज नहीं समझा। तीन से पांच मिनट की ऑडियो रिकार्डिंग में बुजुर्ग पिता ने इस बात का भी जिक्र किया है कि बेटे ने कई बार उनका फोन तोड़ा और चश्मा शौचालय में फेंक दिया। दिसंबर की कंपकंपाती ठंड में बहू ने ससुर के बिस्तर पर ठंडा पानी फेंक दिया, और उसी साल बुजुर्ग पिता को बेटा डीडीयू अस्पताल की इमरजेंसी में लावारिस छोड़ आया था। शिकायत के अनुसार मां के इलाज में पैसा जुटाने की आड़ में बहू बेटे ने मालवीय नगर का 40 लाख का मकान बेच दिया, जिसके लिए झूठ बोलकर उनसे मकान के कागजों पर हस्ताक्षर कराए गए, बाद में मां के इलाज पर केवल 80 हजार रुपए खर्च किए गए। 78 बिंदुआें की 17 पेज की शिकायत में केसी मल्होत्रा ने बहू के रिश्तेदार सहित बहू बेटे और पोतो पर भी एक्ट के तहत कार्रवाई करने की मांग की है।

Nishi Bhat

Friday, 15 June 2018

एक अपील

एक अपील
अगर किसी को भी भगवान के न होने पर शक है तो एक उससे जरूर मिलें, यह एक चमत्कार ही अपनी जिंदगी की इतनी विषम परिस्थितियों के बीच भी कोई शक्ति उसे टूटने नहीं देती, कोई भी अपना सगा पास न होने के बाद भी हैं कोई ऐसा जो उसका कभी साथ नहीं छोड़ता, मुश्किलें है कठिनाइयां हैं बावजूद इसके उसे उपर वाला हर बार बचाता है। हां यह परमात्मा का ही सानिध्य है जो वह आज खुली हवा में सांस ले पा रहा है, बीते सात महीने से तो नौबत यहां तक पहुंच गई कि उसे खुद पता नहीं कि अब वह जेल पहुंच जाएं, नहीं अगर आप यह सोच रहे हैं कि वह कोई अपराधी है, जेल से भागा हुआ चोर है, तो आप पूरी तरह गलत है। कोई परिणाम निकालने से पहले, उसके जीवन पर नजर डालते हैं तब शायद चमत्कार होने या फिर भगवान के धरती पर होने का विश्वास और दृढ़ हो सकेगा। हर दूसरा व्यक्ति जो उससे मिलता है अगले ही दिन कन्नी काटने लगता है यह कहकर कि जीवन में इतना परेशान कोई कैसे हो सकता है, मानते हैं मुश्किलें आती है लेकिन हल भी हो जाता है और जिंदगी सामान्य चलती रहती है। नहीं उस शख्स की जिंदगी में ऐसा कुछ भी सामान्य नहीं, पोस्ट पढ़ने मे लंबी हो सकती हो सकती है उसके जीवन को कागज पर उतारने की कोशिश करने वाली ऐसी सैंकड़ों पोस्ट कम पड़ जाएगीं, दरअसल बचपन ही आभावों के बीच रहा, पिता देवता स्वरूप भाइयों से अपना हिस्सा नहीं मिला तो खुद मेहनत कर मकान खड़ा कर लिया, इलाहाबाद के पाश इलाके में ऐसी कोठी जो हर कोई आता जाता देखें, हो भी क्यूं न एक किराने की दुकान चलाने वाला व्यक्ति भला इनती मेहनत कर इनती सफलता कैसे हासिल कर सकता है। घर के अपने ही बेगाने हो गए, बड़े भाइ को भड़काया गया, घर में फूट डाली गई, झगड़े शुरू हुए तो आशियाना बिखरते देर न लगी, भाई ने हिस्सा मांग लिया, घर बिखर गया, बंटवारा हुआ। अच्छा पैसा भी मिला, लेकिन बंटवारे का दुख पिता को लील गया, पिता बीमार पड़ गए, मकान बेचने के बाद मिले पैसे भी इलाज में ही खर्च हो गए। बचा कुछ नहीं, मकान भी हाथ से गया और पिता भी नहीं रहे, घर पर कारोबार को देखना था तो नौकरी या आगे की व्यवसायिक पढ़ाई भी ज्यादा नहीं हो पाई। धीरे-धीरे सबकुछ खत्म होता जा रहा था, भाई का गुमान अब भी यह समझने को तैयार नहीं था कि बंधी झाडू लाख की, बिखरे तो खाक की, लेकिन उसे कोई नहीं रोक सकता था। पिता के जाने के बाद मां को लेकर भी झगड़ा शुरू हो गया, छोटे भाई को सबके सामने बुरा बताने एक मुहिम शुरू हो गई वह चाहकर भी अपना पक्ष नहीं रख पा रहा था। किसी गैर ने परिवार के एक शख्क के कान में जगह का ऐसा घूंट घोला कि उसके आगे वह बचपन का भाई प्रेम भी भूल गया, उसे भाई इतना बुरा लगने लगा कि उसने अलग रहने के लिए उसके चरित्र पर भी लांछन लगाना शुरू कर दिया। पारिवारिक विवाद के चलते ही वह अपने भविष्य पर भी ध्यान नहीं दे पाया, घर के कारोबार में मंदी, पिता की मौत, भाई का अलग होना और आर्थिक स्थिति ठीक न होने की वजह से जीवन धीरे धीरे गर्त में जा रहा था। बचपन की एक दोस्त थी जिसके साथ कभी जीवन बिताने की सोची थी उसे भी एक झूठ कहकर अलग कर दिया गया। जीने की ऐसी कोई खास वजह रह नहीं गई थी, जिस दुकान पर बैठने की वजह से वह नियमित स्कूल नहीं जा पाया, अब उसपर भाई ने कब्जा कर लिया था, वह दुकान पर छोटे भाई का साया भी नहीं पड़ने देता था। परिवार में कुछ इज्जत बची रहने इसके लिए उसने केवल मां को अपने साथ रहने की बात कहीं, बड़े भाई ने मां को जाने दिया। यह बात ही उसके लिए तसल्ली से कम नहीं थी परिवार की इज्जत पैसा, प्यार सब गया, लेकिन मां साथ आ गई। अब भी दुश्वारियां कम नहीं थी, मां को एक सम्मानजनक जीवन देने के लिए एक आमदनी होना जरूरी था, भाई ने कारोबार पर कब्जा कर लिया, अब उसके बाद कुछ नहीं बचा था। दुकान पर न बैठता तो आईआईएम की पढ़ाई कर लेता, लेकिन उस समय भी भाई ने आगे की पढ़ाई करने की जगह दुकान पर बैठने का जोर बनाया, आज उसी दुकान से वह अलग हो गया। इस बीच इकलौती बहन की शादी हो चुकी थी, शुरूआत में ससुराल में सब अच्छा रहा, लेकिन मायने की माली हालत अच्छी न होने का असर लड़की के ससुराल पर जरूर पड़ता है। घर में रार की बात ससुराल पहुंची तो बहनोई ने बहन पर जुल्म करना शुरू कर दिया, इस बीच दो बार अच्छी नौकरी लगी लेकिन वह भी ज्यादा दिन नहीं चल पाई। बहन के एक बेटी हुई, जो शुरू में मामा को बहुत प्यार करती थी, जब देखा मामा के हाथ पैसे से तंग है तो वह दूर होने लगी। बहनोई के अत्याचार एक दिन बहन की मौत की बात खत्म हो गए, हालात पता थे कि उसे मौत नहीं हुई मारा गया है गुस्सा सातवें आसामान पर पहुंच गया, पुलिस केस करने की पूरी तैयारी थी मां ने छोटे बेटे से कहा बेटा केस करने के लिए भी पैसे चाहिए होते हैं सोच लो कैसे दिलाआगे बहन को न्याय? वह खून का घूंट पीकर रह गया। बहन का जाना उसे अंदर तक तोड़ गया, बहन नहीं जी का टुकड़ा था, अब जीना सच में मुहाल होने लगा, कुछ भी करने और खुद को दोबारा समेटने की हिम्मत टूट चुकी थी। ध्यान और मेडिटेशन में उसका शुरू से मन था, परिस्थितियां इतनी विपरित थी उसका ध्यान प्रभू में रमने लगा, यही वजह रही कि जब कुछ समझ नहीं आता तो वह रात-रात भर मेडिटेशन में ही रहता। जिससे अंर्तमन काफी मजबूत हो गया, लेकिन परिस्थितियां अब भी मुंह बाए खड़ी थी, वर्ष 2012 में अच्छी नौकरी लगी, कुछ हालात सुधारने के लिए बैंक से लोन ले लिया, पता क्या था कि लोन लेते ही तीन महीने बाद फिर नौकरी चली जाएगी, अब तो घर के जरूरी खर्च के साथ ही बैंक की पचास हजार की मासिक ईएमआई का भी इंतजाम करना था। हुआ क्या, बाकी खर्च रोक कर बैंक के लोन से ही उसकी ईएमआई चुकता की जाने लगी, लेकिन वह भी कब तक कमाई के और साधन खुल ही नहीं रहे थे, जिस काम में हाथ डालो उसी में घाटा। नौकरी गए थी तीन साल हो गए, बैंक का पैसा ही बैंक को लौटाया जा रहा था, लेकिन वह भी कब तक, बीते छह महीने से ईएमआई रूकी है। लोन के समय दिया गया ब्लैंक चेक किसी भी दिन लगाकर बैंक रिकवरी जेल भेज कर करा सकती है। खुद भूखे रहा जा सकता है मां और एक पालतू पशु को भूखे रहने अपराध करने जैसा है। भगवान हर बार किसी तरह बचाता है इस बार हालात बहुत खराब है सात साल कैद होने के बाद कुछ नहीं बचेगा कुछ भी नहीं, मां और कुत्ते को देखने वाला कोई नहीं, भाई पहले ही मुंह फेर चुका है। कहते हैं भगवान इंसान को ही किसी रूप में धरती पर मदद के लिए भेजता है, इस पोस्ट को पढ़कर किसी भी व्यक्ति के अंदर का भगवान यदि जागता है तो तुरंत संपर्क करें, आपकी एक छोटी सी सहायता किसी का जीवन बर्बाद होने से बचा सकती है। संपर्क करें - 9911819723

Wednesday, 7 March 2018

aapni baat: वो लड़की

aapni baat: वो लड़की: वो लड़की कॉलेज की हर लड़की उससे दूर भागती थी, उसके साथ चलना तो दूर कोई साथ बैठना पसंद नहीं करता था, जहां लड़कियों के झुंड के बीच लाली ल...

वो लड़की





वो लड़की
कॉलेज की हर लड़की उससे दूर भागती थी, उसके साथ चलना तो दूर कोई साथ बैठना पसंद नहीं करता था, जहां लड़कियों के झुंड के बीच लाली लिपस्टिक और नए फैशन की बातें होती थी, उसके पास केवल अपने जीते हुए मेडल, हर्डल रेस और लांग रेस के किस्से होते थे। वह अब तक पढ़ी भी लड़को के बीच थी और यही कारण रहा कि पहनावे से भी वह खुद को लड़को जैसा ही रखती थी। प्रार्थना सभा शुरू होने से पहले ही वह लाइन में आकर खड़ी हो गई, उसे कॉलेज में प्रवेश लिए एक हफ्ते से अधिक हो गया था, लेकिन किसी ने उससे दोस्ती करने की हिम्मत नहीं की, हालांकि कानाफूंसी के जरिए उसके चर्चे हर जुबां तक पहुंच चुके थे।
देहरादून से दसवीं की परीक्षा पास कर उसने ग्याहवी में एडमिशन लिया था, कॉलेज क्या शहर ही नया था, दोस्त होना तो दूर की बात। उसने मन के भाव ने प्रिंसिपल ने पढ़ा और बोले, प्रतिमा क्या हुआ, कॉलेज अच्छा नहीं लगा, दोस्त नहीं बना अभी तक क्या कोई, बेहद कम और लगभग चुप रहने वाली उस लड़की की पहली बार क्लास में सबसे आवाज सुनी, नहीं, हमें कोई यहां पसंद नहीं करता, भारी भरकम आवाज और उतने ही रौबिले अंदाज में दिया गया जवाब, प्रिंसिपल के कहने पर दो लड़कियों को प्रतिमा से बात करने को कहा गया। कॉलेज से घर की दूरी लगभग बीस मिनट की थी, जिसे अकसर पैदल चल तक ही तय किया जाता था, जबकि प्रतिमा की मौसी का घर जहां रहकर वह पढ़ने आई थी, लगभग आधे घंटे की दूरी पर था, प्रिसिपल की डांट के बाद यकायत सब लड़कियां उसे कंपनी देने पहुंच गई, लेकिन सुषमा का घर रास्ते में ही पड़ता था, घर लौटते हुए सुषमा ने कहा कल जल्दी निकलना घर से चाय पीकर साथ कॉलेज जाएगें, मां भी मिलना चाहती है तुमसे मैने बताया मम्मी को तुम्हारे बारे में, तो आ रही हो न कल सुबह? हां आती हूं तैयार रहना जल्दी निकलना होगा, प्रतिमा ने कहा, कॉलेज से घर और घर से कॉलेज के बीच का साथ अब दोस्ती में बदल गया था, सुषमा के बहाने बाकी लड़कियां भी अब प्रतिमा से घुलने मिलने लगी थी, राज्य स्तरीय  रेसिंग में मेडल हासिल करने के उसके किस्से फेमस होने लगे। इसी बीच प्रतिमा गल्र्स हॉस्टल के किस्से भी खूब सुनाती, लड़को जैसा उसका पहनावा और जीत के किस्सों से सुषमा के मन में प्रतिमा के लिए अलग सा आर्कषण पैदा होने लगा, कुछ ही दिन में छह फीट लंबी प्रतिमा और पांच फीट लंबी सुषमा की दोस्ती के किस्से पूरे कॉलेज में छा गए, अब तो उनकी दोस्ती की मिसालें दी जाने लगीं, एक टिफिन में खाना, साथ आने जाने, पढ़ाई करने से लेकर अधिकांश समय दोनों का एक दूसरे के साथ ही बीतता। कॉलेज खत्म होने के बाद प्रतिमा देहरादून वापस चली गई, लेकिन दूर होने से भी दोस्ती पर फर्क नहीं पड़ा, हर दो से तीन महीने में कभी सुषमा देहरादून तो कभी प्रतिमा कानपुर पहुंच जाती, परिजन निश्चिंत थे दोस्ती ही है और दोनो एक दूसरे का अच्छे से ख्याल रखती हैं। एक शाम सुषमा की मां ने उसे एक लड़की फोटो दिखाई, जिसे सुषमा ने नजरअंदाज कर दिया, मां दस दिन में पचास से अधिक लड़कों की फोटो दिखा चुकी थी, लेकिन सुषमा ने पलटकर एक में भी रूचि नहीं दिखाई, मां का मन ठिठका, और प्रतिमा के घर पर आने की पाबंदी लगा दी गई। दोस्ती का सिलसिला चिट्टी के जरिए जारी रहा, एमए करने के बाद सुषमा को दिल्ली में अच्छी नौकरी मिल गई, एक बार फिर उसे प्रतिमा से बेझिझक मिलने का मौका मिला और जुगाड़  लगाकर प्रतिमा भी दिल्ली पहुंच गई,मां को अंदेशा इसी बात का था। बेटी बड़ी हो गई है ज्यादा उलझना ठीक नहीं, यह सोचकर मां ने कुछ नहीं कहा, इसी बीच सुषमा के ऑफिस में एक लड़के ने उसे प्रपोज किया, सुषमा ने घर पहुंचते ही उसे यह बात प्रतिमा को बताई, सुषमा को प्रतिमा के ऐसे किसी भी रिएक्शन की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी, कॉलेज के समय की उसकी सबकी अच्छी दोस्त आज उसकी लाइफ के पहले ब्वाय फ्रेंड को गाली दे रही है, आखिर प्रतिमा इसकी पेजेसिव क्यूं हो रही है हमारी दोस्ती सहेलियो सी ही थी न, प्रतिमा ने क्या सपने बुन रखे है, बताया क्यूं नहीं, ऐसे तमाम सवाल सुषमा के मन में कौंध गए, प्रतिमा ने उसे हिदायत दी कि वह आइदा उस लड़के से नहीं मिलेगी, सुषमा को शक हुआ प्रतिमा का व्यवहार उसके प्रति ठीक नहीं है। दो से तीन महीने के अंदर दोनों में जबरदस्त लड़ाई होने लगी, इतनी कि प्रतिमा को घर छोड़ कर जाता पड़ा, सुषमा को कॉलेज के दिनों का पहला क्रश याद आया, उस समय भी उसने प्रतिमा को उसके बारे मे बताया था तो वह ऐसे ही गुस्सा हुई थी, वह समझ नहीं पाई प्रतिमा लड़को जैसी दिखती ही नहीं है बल्कि उसका व्यवहार भी लड़को जैसा ही है। सुषमा ने मां को फोन कर सारी बातें बताई, मां कुछ दिनों के लिए उसे घर बुलाया और तसल्ली से सारी बातें सुनीं, सुषमा के सामने अब तस्वीर साफ थी, उसने प्रतिमा से दूरी बनानी शुरू कर दी। आज प्रतिमा को सुषमा की जिंदगी से गए दस साल हो गए है, फेसबुक पर लड़को सी दिखने वाली एक लड़की की प्रोफाइल और उसकी दोस्त दिखी तो अचानक प्रतिमा की कहानी याद आ गई।

निशि भाट


Saturday, 27 January 2018

शुक्रिया एम्स, शुक्रिया दोस्त


 


पेशे से पत्रकार, घुमने और पढने का शौंक, यूं तो यहां आना एक इत्तेफाक था, लेकिन यहां आएं तो यहीं के होकर रहे गए, खबरों को चुनने के लिए दिन भर घुमना और अगर पसंद की मिल जाएं तो उसको पकाने के लिए जी जान लगा देने का तक का जुनून, हेल्थ बीट देखते देखते अस्पतालों से चरम सीमा तक का प्रेम हो गया, अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हर बड़े अस्पताल का चिर परिचित चेहरा हमें वहां का मुलाजिम समझता है। इसी घुमक्कड़ी की आदत की बदौलत जिंदगी ने कुछ अजीज दोस्त भी दिए।

एम्स के न्यूरोलॉजी विभाग की ओपीडी में रोजाना की तरह भीड़ थी, कमरा नंबर सात के सामने एक बेसुध सी महिला कभी व्हील चेयर पर गर्दन लटकाएं अपने पति को देखे रही थी तो कभी  डॉक्टर के कमरें को,  तंग जगह और भीड़ के कारण रूपम से ज्यादा देर बात नहीं हो पाई, कुछ देर रूककर पूछा, कहां से आई हो, क्या परेशानी है? एक सवाल ने जैसे उसके मन के अंदर की पीड़ा को हवा दे दी, झारखंड निवासी रूपम के पति के सिर में ट्यूमर है, बीते चार साल से एम्स इलाज कराने रही है, सात और दस साल के दो बच्चों की परवरिश के साथ ही रूपम को पति का इलाज भी कराना है। हर दो हफ्तें रूपम डॉक्टर के बताए समय पर एम्स पहुंच जाती है। बातों का सिलसिला आगे बढ़ता इतने में ही नंबर गया, पति को कुर्सी से संभालती हुई वह कमरे की ओर बढ़ी, पीछे मुड़कर कहा, सड़कपार राजगढ़िया धर्मशाला में ठहरे हैं, आइएगा मिलने, रूमप की थोड़ी लेकिन बेहद गंभीर बातों ने उससे दोबारा मिलने की वजह पैदा कर दी, दो दिन बाद फिर एम्स जाना हुआ, मैं राजगढ़िया के गेट पर खड़ी, एक पत्रकार की हैसियत से नहीं, एक समाजसेविका के रूप में, बहुत बार ऐसा होता है कि कुछ अच्छा करने के लिए पत्रकार सरीखी सही पहचान बताने की जगह सामान्य परिचय देने में काम जल्दी बन जाता है। रूपम के पति को कैंसरयुक्त सिर का ट्यूमर था, जिसने दिमाग को अधिकांश हिस्सा घेर रखा था, सर्जरी कर ट्यूमर निकाला जा चुका था, हर दो हफ्ते में कीमो के लिए उसे झारखंड से एम्स आना होता है। रूपम इस संघर्ष में अकेले ही थी, बच्चों की जरूरत पूरी करने के लिए घरों में काम भी करती थी। लेकिन बीते तीन साल में उसके एम्स आने के कार्यक्रम में कभी कोई बदलाव नहीं हुआ, रूपम ने बताया कि आठ चरण की कीमों होनी है, सेहत में सुधार हो रहा है तो दिल को तसल्ली मिल रही है। ओपीडी में रूपम से मुलाकात हुई, लेकिन इसके बाद मिलने का सिलसिला जारी रहा, कुछ दिन बाद जब इस बात की तसल्ली हो गई कि पति पूरी तरह ठीक है तब रूपम का एम्स आना कम हो गया, पति की सेहत में सुधार के साथ ही मैं रूपम में एक अजीब तरह का आत्मविश्वास देख रही थी। दो साल के अंतराज के बाद मार्च 2017 में उसने फिर फोन किया, तय समय के अनुसार अगले दिन मैं राजगढ़िया के गेट पर मिली, बताया गया, लड़के ने बीए पास कर दिल्ली में ही नौकरी शुरू कर दी है, पति सहित पूरा परिवार अब यहीं रहेगा, लड़की को बीए की पढ़ाई के लिए डीयू में प्रवेश कराना है। बीते पांच साल के अपने दोस्ती का सफर एक बारी में मेरी आंखों के सामने घुम गया। दिल से रूपम ने कहा शुक्रिया एम्स, शुक्रिया दोस्त,  

Sunday, 11 June 2017

And who will listen to Kashmir?

I have lots things to say about Kashmir, My perspective would never have been change if I could not get chance to talk to localities, student, taxi driver or the waiter of hotel. Though I am not biased but thing are beyond what it has been displayed in the picture in term of Nationalism.  It was three days trip organized by Aiims.  Every one is here want to talk to you. Yes they are not happy.  One of the student of zoology say we are the generation born in conflict and will die in conflict. Expectations increase double when you introduce yourself as a journalist of a National  news paper. My journey Srinagar from Airport to laalchowk in down town was full of lots of complaints of kashmires. We got chance to talk to some student of University of Kashmir. I am starting with an incident. Ex director of Aiims Dr. M.C Mishra just finished his lecture on trauma care injury,  Q AND A Pannel was open for student. One student of social work department Ansur asked more over the time kasmires got injury of pallet gun shot. In such case when if some one come forward to help them ARMY  them and they summoned who has help them. This was not the only one question that was remained unanswered another student also asked about the patient who had lost their eye sight because of pallet gun attack. This gave chance to check the pulse of student. Student of zoology Zarin was also in same temperament. All were supporting  word AZADI. One guy of tea stall said mental illness is increasing in Kashmir, we are not getting proper employment and education, guy named ahmed once went to delhi for his family’s bread and butter, he was so many times harassed by police.. saying ek toh musalman uspe se Kashmir se… he come back to Kashmir after four month and again started selling kehwa. Student of new generations are united they are educating people for their rights. They well know since long how diplomacy has been played on the behalf of their problem. Kashmiris
event don’t have a single complain against Pakistan. Don’t know why but it could be like if some one come forward to help you in bad time so he become God for you. It is just like that when a father start ignoring his own child and child used to become fond of neighbor. Now that neighbor is every thing for him. And he even don’t want to hear a single word about him. LOTS OF proof of this fact can be seen in down town city.  We were told a word YOU ARE SAFE HERE IF YOU ARE NOT WITH CRPF, BSF OR ARMY. That single word was enough of say lots of things.


Tuesday, 21 February 2017

AND....HE DIED, WAITING FOR STENT

स्टेंट के इंतजार में दिलशाद की हुई मौत
- छह स्टेंट के खर्च का पैसा नहीं जुटा पाए
- यूपी सरकार से मिली थी 75 हजार की आर्थिक सहायता
बीते छह महीने से दिल में स्टेंट डालने का इंतजार कर रहे दिलशाद की शनिवार दोपहर मौत हो गई। धमनियों में अधिक रूकावट को देखते हुए जीबी पंत अस्पताल ने उसे छह स्टेंट की जरूरत बताई थी, जिसपर अनुमानित खर्च एक लाख 41 हजार रुपए बताया गया। रुपए जुटाने में अक्षम दिलशाद ने यूपी सरकार से मदद मांगी। लेकिन सरकार ने केवल तीन स्टेंट का ही पैसा दिया, जिसे लगाने के लिए वह छह महीने से जीबी पंत के चक्कर काट रहे थे।
रामुपर निवासी 56 वर्षीय दिलशाद शुक्रवार को जीबी पंत अस्पताल में ही थे, चलने में बेहद अक्षम उनकी पत्नी ही उन्हें पकड़ कर चल रही थी। पूछने पर पता चला कि दिल में बहुत दर्द है लेकिन यहां इलाज नहीं हो पा रहा। दरअसल दिलशाद अपनी बीमारी के लिए जरूरी कीमत का पैसा नहीं जुटा पा रहे थे। दिसंबर महीने में मशक्क्त कर उसने यूपी सरकार से 75 हजार रुपए की धनराशि स्वीकृत भी करा ली, दिसंबर महीने में ही यह धनराशि अस्पताल के खाते में भी आ गई, बावजूद के फरवरी महीने तक भी दिलशाद की एंजियोप्लास्टी नहीं हो पाई। चिकित्सक छह की जरूरत पर तीन न लगाने का जोखिम नहीं उठा पाए और दिलशाद की मौत हो गई। जीबी पंत के एमडीआर रूम से मिली जानकारी के मरीज को एक प्रार्थना पत्र लिखना था, जिसके बाद उसकी सहमति से छह की जगह तीन स्टेंट लगाए जाते। दिलशाद की पत्नी ने बताया कि उन्हें किसी ने भी प्रार्थना पत्र लिखने की बात नहीं बताई। शुक्रवार को भी चिट्ठी लिखने के बाद दिलशाद को दस दिन के बाद की तारीख दी गई। इस बार वह इनता लंबा इंतजार नहीं कर सका और शनिवार को रामपुर में दिलशाद ने दम तोड़ दिया।

सरकार ने कम धनराशि स्वीकृत की
दिलशाद का इलाज करने वाले जीबी पंत अस्पताल के हृदयरोग विभाग के प्रमुख डॉ. विजय कुमार त्रेहन ने बताया कि जिस मरीज को छह स्टेंट की जरूरत उसे तीन लगाकर छोड़ देना सही नहीं, यूपी सरकार को यदि मरीज की मदद करने ही थी तो उसे जरूरत के अनुसार धनराशि स्वीकृत की जानी चाहिए थी। बावजूद इसके दिलशाद की मौत होना बेहद दुखद है।

मामले की जानकारी नहीं
ऐसे किसी मामले की जानकारी नहीं है, रिकार्ड जांच कर पूरी जानकारी हासिल की जाएगी, मरीज के इलाज में यदि बेवजह की तारीख दी गई तो अन्य पहलू भी जांचें जाएगें।
डॉ. राजीव चावला, निदेशक, जीबी पंत अस्पताल

हर महीने होती है एक हजार एंजियोप्लास्टी
 दिल्ली सरकार के प्रमुख सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में हर महीने एक हजार मरीजों की एंजियोप्लास्टी की जाती है। पिछले साल अस्पताल के स्टॉक में 7200 स्टेंट की आपूर्ति की गई।