किसी भी व्यक्ति विशेष पर विरोधी टिप्पणी कर फेसबुक पर समर्थक जुटाते लोग दिखते है बहुत आसान है ऐसा कुछ लिख कर १०० से २०० लाइक मिलना भी बेहद आसान है सदियों से ऐसे ही परंपरा चल रही है गुजरात दंगे हो या फिर मुज्जफ्फर्नगर की हिसा यहाँ केवल इंसानियत ही कुचली गयी. कभी हिन्दू तोह कभी मुस्लिम के रूप में. परिणाम गया राजनेताओ के हिस्से। सोशल मीडिया के इस युग में कौन इन बातो पर विश्वास करेगा की हिन्दुओ को मुस्लिम ने मारा और मुस्लिमो को हिन्दुओ ने. लेकिन अपने बहुचर्चित नेताओ को यह बात हज़म नहीं हो रही थी तब ही कुछ ऐसे महापंचायत आयोजित की गयी जहा भडकाऊ भाषन देकर लोगो को बरगलाया गया. सरे आम अवैध हथियार लहराए गये. प्रशाशन की मौजूदगी में. कमी कहा पूछो कोई क्यों नहीं रोक उस पंचायत को. जबकि पहले ही मुज्ज़फर्नगर प्रेमी युगल के मामले में भड़क चूका था प्रशासन को डर था पंचायत नहीं हुई तोह बड़ा वोट बैंक नाराज़ होगा। फिर अनुमति दी भी तोह लाव लश्कर के साथ क्यों। जहा की हिंसा भड़काने को नेता भी मौजूद थे मीडिया के दवाब देने पैर दो नेताओ की गिरफ़्तारी भी हुई लेकिन ४० लोगो की मौत किस नेता के हिस्से जाएगी। खून हिन्दुओ का भी बहा मुसलमानों का भी. फिर भी बीजेपी के नेता गलती मनाने को तैयार नहि. इसपर उमा भारती का बयान की अपने नेता को बहाएगी महोदय यह किस तरह की राजनीति कर रही है वोह दिन गये जब लोग भगवा रंग देखकर केवल सच झूठ का अंदाजा लगते थी. दागी नेताओ को पल्लू में छिपाने की राजनीती अब नहीं होगी जो गलत है स्वीकार करना होगा तब ही जनता जनार्दन के बीच पार्टी की इज्ज़त और साख बचाई जा सकती है.
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